गूंजते हैं तेरे नगमों से अमीरों के महल,
झोंपड़ों में भी गरीबों के तेरी आवाज़ है,
अपनी मौसिकी पर सबको फक्र होता है मगर,
मेरे साथी आज मौसिकी को तुम पर नाज़ है
=========नौशाद साहब ============
नौशाद साहब की जुबानी - एक दिन एक नौजवान मुझे आया नज़र,
जिसने रौशन कर दिए संगीत के शामो - सहर
वक्त के फनकारों में उसका अलग था इक मकाम,
ज़िक्र जिसका कर रहा हूँ, "रफी" था उसका नाम.
No comments:
Post a Comment