आदाब रफ़ी मित्रों,
मैं समझता हूँ कि, मैं इस पृथ्वी पर उपस्थित भाग्यशाली व्यक्तियों में से मैं एक हूँ क्योंकि, मुझे "मोहम्मद रफ़ी साहब" के जन्म स्थान "कोटला सुल्तान सिंह, अमृतसर" जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ.ये सब "रफ़ी साहब" का आशीर्वाद ही था जो मैं उनकी "जन्म-भूमि" तक जा सका.
१५ अक्तूबर को प्रातः मैं अमृतसर पहुँच गया फिर वहां से एक बस के द्वारा पहले "मजीठा क़स्बा"(अमृतसर से २० किमी.) और फिर वहां से उसी बस के द्वारा "कोटला सुल्तान सिंह"(मजीठा से ५ किमी.) पहुँच गया.गाँव पहुँच कर मैं "श्री गुरबीर समरा" जी के घर गया, उनका घर उसी जगह हैं जहाँ कभी "रफ़ी साहब" का घर हुआ करता था.
कुछ समय के बाद शाम के वक़्त मैं "रफ़ी साहब" के बचपन के दोस्त "श्री कुंदन सिंह जी" से मिला, वो इस समय लगभग ८५ वर्ष के हैं लेकिन उन्हें "रफ़ी साहब" के साथ बिताया एक-एक लम्हा भली-भांति याद है. पुराने दिनों कि याद करते हुए वो कहते हैं कि, जब "रफ़ी साहब" ने १९३७ में गाँव छोड़ा था, तब उन्होंने अपनी निशानी के तौर पर एक पेड़ पर चाकू से अपना नाम लिख दिया था और कहा था, कि जब मेरी याद आये तब इसे देख लेना और मुझे याद करना , तुम मुझे अपने ही पास पाओगे.
श्री कुंदन सिंह जी ने आगे बताया कि, "रफ़ी साहब" के पिता जी "अली मोहम्मद साहब "शादी ब्याह में एक ही बर्तन में "सात रंगों के चावल" एक ही बार में सात अलग-अलग परतों में बना दिया करते थे.उन्होंने बताया कि "रफ़ी साहब" के ससुर जी का नाम "श्री दीन मोहम्मद" और सास जी का नाम "श्रीमती नवाबो" था और "रफ़ी साहब" का ब्याह उनकी पुत्री "बशीरा" के साथ १९४५ में हुआ था.
"श्री कुंदन सिंह जी" के अनुसार उनके गाँव में एक फ़कीर आया करता था और सारंगी बजाया करता था, उसकी विशेषता यह थी कि वो जिस घर के सामने से निकलता था, सारंगी से ही उस घर के मालिक का नाम निकाल कर उसे बुलाया करता था और बहुत ही मीठे सुर में गा कर भिक्षा मांगता था. "रफ़ी साहब" को उसकी आवाज़ बहुत अच्छी लगती थी और वो उसके पीछे-पीछे बहुत दूर तक चले जाया करते थे.
अंत में अपने मित्र को याद करते-करते उनकी आँखें भर आयीं और उन्होंने मुझे अपने गले लगा लिया और कहा -" तुमने यहाँ आ कर बहुत अच्छा किया, और फिर जल्दी ही गाँव में दोबारा आना और हम सब से संपर्क बनाये रखना."
इसके बाद मैंने उनके "चरण-स्पर्श" किये, इस दौरान मुझे लगा कि "रफ़ी साहब" ही अपने बचपन के दोस्त के माध्यम से मुझे आशीर्वाद दे रहे हैं.
अगले दिन सुबह मैं गाँव के उस विद्यालय में गया जहाँ "रफ़ी साहब" पढ़ा करते थे.वहां जा कर मैं हेड मास्टर "श्री जसपाल सिंह" जी से मिला. उस विद्यालय में "रफ़ी साहब" कि एक फोटो लगी हुई है और जसपाल सिंह जी रोज सुबह उसके सामने अगरबत्ती जला कर "रफ़ी साहब" कि पूजा करते हैं.जसपाल जी ने मुझे बच्चों से मिलवाया और बच्चों ने उनके पीछे-पीछे कहा - "जय श्री मोहम्मद रफ़ी साहब".
मैंने जसपाल जी को विद्यालय कि हर कक्षा में "रफ़ी साहब" कि एक फोटो लगाने का सुझाव दिया , जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया.इसके साथ ही मैंने उन्हें यह भी सुझाव दिया कि सुबह "प्रार्थना" के साथ "रफ़ी साहब" का कोई "भक्ति गीत या देश भक्ति गीत" भी बच्चों से गवाया जाय.
विद्यालय के सभी बच्चे "रफ़ी साहब" से भली-भांति परिचित थे.एक छोटी बच्ची ने मेरे आग्रह पर "बाबुल कि दुवाएं लेती जा...." गीत सुनाया और इसके बाद जसपाल जी के आग्रह पर मैंने बच्चों को "हम लायें हैं तूफ़ान से कश्ती निकल के..." गीत सुनाया और अनुरोध किया कि इसे प्रार्थना के साथ शामिल किया जाए.
मैंने इसके बाद वह कक्षा देखी जहाँ बैठ कर रफ़ी साहब पढ़ा करते थे.साथ ही पीपल का पेड़ देखा जिसके नीचे "रफ़ी साहब" खेला करते थे, और वो हैण्ड पम्प अभी भी ठीक है जिससे "रफ़ी साहब" पानी पिया करते थे.
अंत में मैंने बच्चों को टॉफियां वितरित कीं और बच्चों से विदा ली.
मेरी यह यात्रा किसी "चारधाम यात्रा/हज यात्रा" से कम न थी और "रफ़ी साहब" के आशीर्वाद और "श्री गुरबीर जी व उनके परिवार के असीम सहयोग से पूरी हुयी.मैं "श्री गुरबीर जी" और उनके परिवार का आजीवन आभारी रहूँगा.
धन्यवाद.
"जय रफ़ी साहब"
-- भवदीय,
संजीव कुमार दीक्षित
लखनऊ
"LONG LIVE RAFI SAHAB"
१५ अक्तूबर को प्रातः मैं अमृतसर पहुँच गया फिर वहां से एक बस के द्वारा पहले "मजीठा क़स्बा"(अमृतसर से २० किमी.) और फिर वहां से उसी बस के द्वारा "कोटला सुल्तान सिंह"(मजीठा से ५ किमी.) पहुँच गया.गाँव पहुँच कर मैं "श्री गुरबीर समरा" जी के घर गया, उनका घर उसी जगह हैं जहाँ कभी "रफ़ी साहब" का घर हुआ करता था.
कुछ समय के बाद शाम के वक़्त मैं "रफ़ी साहब" के बचपन के दोस्त "श्री कुंदन सिंह जी" से मिला, वो इस समय लगभग ८५ वर्ष के हैं लेकिन उन्हें "रफ़ी साहब" के साथ बिताया एक-एक लम्हा भली-भांति याद है. पुराने दिनों कि याद करते हुए वो कहते हैं कि, जब "रफ़ी साहब" ने १९३७ में गाँव छोड़ा था, तब उन्होंने अपनी निशानी के तौर पर एक पेड़ पर चाकू से अपना नाम लिख दिया था और कहा था, कि जब मेरी याद आये तब इसे देख लेना और मुझे याद करना , तुम मुझे अपने ही पास पाओगे.
श्री कुंदन सिंह जी ने आगे बताया कि, "रफ़ी साहब" के पिता जी "अली मोहम्मद साहब "शादी ब्याह में एक ही बर्तन में "सात रंगों के चावल" एक ही बार में सात अलग-अलग परतों में बना दिया करते थे.उन्होंने बताया कि "रफ़ी साहब" के ससुर जी का नाम "श्री दीन मोहम्मद" और सास जी का नाम "श्रीमती नवाबो" था और "रफ़ी साहब" का ब्याह उनकी पुत्री "बशीरा" के साथ १९४५ में हुआ था.
"श्री कुंदन सिंह जी" के अनुसार उनके गाँव में एक फ़कीर आया करता था और सारंगी बजाया करता था, उसकी विशेषता यह थी कि वो जिस घर के सामने से निकलता था, सारंगी से ही उस घर के मालिक का नाम निकाल कर उसे बुलाया करता था और बहुत ही मीठे सुर में गा कर भिक्षा मांगता था. "रफ़ी साहब" को उसकी आवाज़ बहुत अच्छी लगती थी और वो उसके पीछे-पीछे बहुत दूर तक चले जाया करते थे.
अंत में अपने मित्र को याद करते-करते उनकी आँखें भर आयीं और उन्होंने मुझे अपने गले लगा लिया और कहा -" तुमने यहाँ आ कर बहुत अच्छा किया, और फिर जल्दी ही गाँव में दोबारा आना और हम सब से संपर्क बनाये रखना."
इसके बाद मैंने उनके "चरण-स्पर्श" किये, इस दौरान मुझे लगा कि "रफ़ी साहब" ही अपने बचपन के दोस्त के माध्यम से मुझे आशीर्वाद दे रहे हैं.
अगले दिन सुबह मैं गाँव के उस विद्यालय में गया जहाँ "रफ़ी साहब" पढ़ा करते थे.वहां जा कर मैं हेड मास्टर "श्री जसपाल सिंह" जी से मिला. उस विद्यालय में "रफ़ी साहब" कि एक फोटो लगी हुई है और जसपाल सिंह जी रोज सुबह उसके सामने अगरबत्ती जला कर "रफ़ी साहब" कि पूजा करते हैं.जसपाल जी ने मुझे बच्चों से मिलवाया और बच्चों ने उनके पीछे-पीछे कहा - "जय श्री मोहम्मद रफ़ी साहब".
मैंने जसपाल जी को विद्यालय कि हर कक्षा में "रफ़ी साहब" कि एक फोटो लगाने का सुझाव दिया , जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया.इसके साथ ही मैंने उन्हें यह भी सुझाव दिया कि सुबह "प्रार्थना" के साथ "रफ़ी साहब" का कोई "भक्ति गीत या देश भक्ति गीत" भी बच्चों से गवाया जाय.
विद्यालय के सभी बच्चे "रफ़ी साहब" से भली-भांति परिचित थे.एक छोटी बच्ची ने मेरे आग्रह पर "बाबुल कि दुवाएं लेती जा...." गीत सुनाया और इसके बाद जसपाल जी के आग्रह पर मैंने बच्चों को "हम लायें हैं तूफ़ान से कश्ती निकल के..." गीत सुनाया और अनुरोध किया कि इसे प्रार्थना के साथ शामिल किया जाए.
मैंने इसके बाद वह कक्षा देखी जहाँ बैठ कर रफ़ी साहब पढ़ा करते थे.साथ ही पीपल का पेड़ देखा जिसके नीचे "रफ़ी साहब" खेला करते थे, और वो हैण्ड पम्प अभी भी ठीक है जिससे "रफ़ी साहब" पानी पिया करते थे.
अंत में मैंने बच्चों को टॉफियां वितरित कीं और बच्चों से विदा ली.
मेरी यह यात्रा किसी "चारधाम यात्रा/हज यात्रा" से कम न थी और "रफ़ी साहब" के आशीर्वाद और "श्री गुरबीर जी व उनके परिवार के असीम सहयोग से पूरी हुयी.मैं "श्री गुरबीर जी" और उनके परिवार का आजीवन आभारी रहूँगा.
धन्यवाद.
"जय रफ़ी साहब"
-- भवदीय,
संजीव कुमार दीक्षित
लखनऊ
"LONG LIVE RAFI SAHAB"
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Gurbeer samra ji (Son of the owner of rafi sahab's house) with Kundan singh ji(Childhood friend of RAFI SAHAB).JPG 1993K View Download |
Hand pump of the school which RAFI SAHAB used to drink water.JPG 121K View Download |
I distributing the toffees among the children of school.JPG 123K View Download |
I with childhood friend of RAFI SAHAB in RAFI SAHAB'S paternal house.JPG 1894K View Download |
Kundan singh ji with Hardeep singh ji,The owner of house of RAFI SAHAB in back.JPG 662K View Download |
Kundan singh ji,Childhood friend of Rafi Sahab.JPG 114K View Download |
Main gate of the school of RAFI SAHAB.JPG 130K View Download |
New building of school of RAFI SAHAB.JPG 135K View Download |
Old building of school where RAFI SAHAB studied till 4th std..JPG 128K View Download |
Peepal tree in school campus where RAFI SAHAB played in recess.JPG 146K View Download |
Photo of RAFI SAHAB in his childhood's school(I with head of the school,Jaspal ji).JPG 84K View Download |
Board on the way to village.JPG 120K View Download |
Children of school saying JAI SRI MOHD. RAFI SAHAB(Gurbir ji in back).JPG 112K View Download |
Class room of RAFI SAHAB.JPG 97K |
1 comment:
Dear Sanjeev!
I remember that we were planning to visit together at kotla sultanpur, but due to family reason I could not accompany with you.
But Apki is visit ko pad ke Rafi Sahab ke Ashirwad ka Prasad Duniya Bhar Ke Rafi Fan Apni Jagho Pe reh Kar thoda thoda Paa lenge mujhe aisa lagta hai aur mai to paa hi chuka hoon.
Sanjeev appke is lekh ko pad ke mujhe aisa lag raha hai rafi sahab ke jeevan ke kuch pehloo jo shayad abhi tak unke relatives ko chhor kar shayad hi koi janta hoga,aapki visit ke jariye samne khul kar samne aa paye hai for example connection of Rafi Sahab house with Mr.Gurbeer Samra Ji and Unke Saas aur Sasur ke Bare me ,father Ka 7 rang ke chawal banana aur fakir jis ghar ke samne se gujarta uske makaan malik ka naam sarangi se bajanaa etc.
Ye sab kuch bahut badi baat hai .
Lagta hai shayad wo fakir Khuda
ka koi doot tha jo rafi sahab ko
unke jeevan ka maqsad yaad dilane
aata hoga.
Gurbeer Singh
Lucknow
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