Thursday, December 27, 2007

31ST JULY - SHRADDHANJALI

मोहम्मद रफी - एक शब्दांजलि
दिल की कलम से

दीपक महान

Wednesday, the 25th July 2007

31 जुलाईः रफ़ी साहब की पुण्य तिथि पर एक शब्दांजलि
यह आवाज़ यूँ ही फिज़ाओं में गूंजती रहे

२७ साल हो गए रफ़ी साहब को हम से बिछड़े हुए पर अब भी यक़ीन नहीं होता कि वो दुनिया के इस मेले को छोड़ कहीं दूर, बहुत दूर चले गए हैं। ३१ जुलाई १९८० की वो मनहूस शाम मुझे आज भी अच्छी तरह याद है। शाम से ही माहौल कुछ ग़मगीन सा लग रहा था, हवा सहमी-सहमी सी थी मानों कुछ अप्रत्याशित घटने की आशंका से भयभीत हो। न जाने क्यों मेरे हाथ सज़दे में उठ, रफ़ी साहब की सुख शांति के लिए दुआ मांगने लगे। पर मुझे क्या पता था कि जिस वक्त मैं दुआ माँग रहा था, उसी वक्त ईश्वर उन्हें चिर शान्ति का आशीर्वाद दे रहा था। दूसरे दिन, जिस किसी ने रफ़ी साहब के इंतकाल की खबर सुनी, वो स्तब्ध रह गया, प्रकृति का बांध टूट गया और भारतवासी तन्हा हो गए क्योंकि रफ़ी साहब की आवाज़, एक इंसान की नहीं, बल्कि हिन्दुस्तान की आत्मा की आवाज़ थी। अचानक ऐसी आवाज़ खामोश हो गई जो मंदिरों में भजनों के रूप में, शादियों में बेटी की बिदाई में और सूफी संतों की मजारों पर कव्वाली के रूप में आने वाली कई सदियों तक गूंजती रहेगी।

रफ़ी साहब की शख़्सियत हमारी जिंदगी का इस कदर हिस्सा बन चुकी थी कि उनके जुदा होने का कभी ख्याल भीहमारे मन में नहीं आया। उनकी पुरज़ोर आवाज़ की नर्म छाँव और थपकियों के सहारे हमने बचपन से जवानी की दहलीज पर कदम रखा, नग्मों की समझ उन्हीं की आवाज़ के साथ उजागर हुई और वो मीठी आवाज़, बचपन से कब जवानी के खून में घुलमिल गई, हमे पता ही नहीं चला।

रफ़ी साहब हमेशा संगीत आकाश में सूरज की तरह जगमगाते रहें, उनकी आवाज़ में जो लोच था, जो सोज और क़शिश थी वो अपने आप में बेमिसाल थी। कठिन से कठिन तान, बारीक़ से बारीक़ मुर्की या अन्य गले की हरकत को वो बड़ी आसानी से पेश कर, श्रोताओं का दिल जीत लेते थे। लफ्ज़ों की अदायगी में भी रफ़ी साहब बेजोड़ थे और शब्दों के भावों को संगीतमय अभिव्यक्ति देने में वो अपनी तरह के अकेले गायक थे। उन्हें गायकी का बेताज बादशाह इसीलिए कहा जाता था क्योंकि उनकी आवाज़ का अदांजे बयाँ ही और था। भजन हो या गीत, गज़ल हो या कव्वाली, रोमांटिक गीत हो या पाश्चात्य संगीत की लय, रफ़ी साहब का कोई सानी नहीं था।

"तुझे नग्मों की जाँ, अहले नजर, यूहीं नहीं कहते,
तेरे गीतों को दिल का हमसफ़र, यूहीं नहीं कहते,
सुनी सबने मोहब्बत की जबाँ, आवाज़ में तेरी,
धड़कता है दिले हिन्दोस्ताँ, आवाज़ में तेरी


सच, उनकी आवाज़ में ईश्वर का प्यार बरसता था। रफ़ी साहब जितने अच्छे गायक कलाकार थे उससे कहीं ज्यादा अच्छे इंसान भी थे। प्रसिद्धि के शिखर पर पहुँचने के बावजूद वे इन्सानियत की मिसाल रहे दिलीप कुमार साहब फरमाते हैं कि "रफ़ी साहब स्टूडियो के बाहर सिर्फ मंद्र सप्तक में बात करते थे। ४० वर्षो के फिल्मी जीवन में कभी किसी ने उन्हें किसी से अभद्र व्यवहार करते नहीं देखा, न ऊँची आवाज़ में बात करते सुना"। उनके बड़प्पन के किस्से हर उस शख़्स की याद में बसे हैं जो उनसे एक बार मिला होगा।

गरीबों, अपंगो, समाज-सेवी संस्थाओं के लिए वे जीवन पर्यन्त अपना योगदान देते रहे। कितने ही जरूरत मंद निर्माताओं, गीतकारों, संगीतकारों के लिए उन्होंने मुफ्त या नगण्य कीमत पर गीत गा दिए ताकि उनका कैरियर बन जाए। सच्चाई और ख़ुदाई हमेशा उनके व्यक्त्तित्व का हिस्सा रहे और यही पवित्रता उनकी आवाज़ में भी दिखलाई देती थी।

शोहरत की बुलंदियों पे बैठे लोगों की शान में कई बार झूठी तारीफें भी की जाती हैं लेकिन असली तारीफ वो होती है जो आपके प्रतिद्वंदियों, सह-कर्मियों या सेवकों द्वारा की जाए और इस मामले में रफ़ी साहब खुशनसीब थे। उनकी मृत्यु पर मशहूर गायक तलत मेहमूद ने रून्धे गले से कहा था, "रफ़ी साहब, बहुत ही नेक इंसान थे, दुनिया को उनकी अभी बहुत जरूरत थी। काश, अल्लाह-ताला मेरी जान ले लेता और रफ़ी साहब की जान बख्श देता"। शायद किसी भी इंसान को इससे बड़ा सम्मान नहीं दिया जा सकता।

हिन्दुस्तानी फिल्म संगीत में शंकर- जयकिशन की जोड़ी का अपना एक मुकाम है और उनकी सफलता में रफ़ी साहब का भी भरपूर योगदान रहा है। रफ़ी साहब के निधन के बाद एक बार इत्तेफाक से मेरी मुलाकात शंकर जी से बम्बई के क्रिकेट क्लब ऑफ इंड़िया में हुई और हमने फिल्म संगीत पर विस्तृत चर्चा की। बातचीत के दौरान रफ़ी साहब के बारे में बात करते-करते शंकर भावुक हो उठे और बोले "व्यक्तिगत जीवन में रफ़ी इंसान नहीं देवता थे। इस फिल्मी दुनिया में जहाँ हर कोई किसी का बुरा चाहता है, अहित करता है, रफ़ी साहब ने किसी का बुरा नहीं सोचा, कभी बुरा नहीं किया" । शंकर ने आगे बताया कि कैसे जयकिशन और शंकर के बीच उपजे मतभेदों को, रफ़ी साहब ने प्यार से सुलझाया था और मरते दम तक जोड़ी को कायम रखने का वायदा भी लिया था। शंकर कहने लगे कि उसके बाद जब भी कोई बहस या टकराव होता तो रफ़ी साहब ही हमारे बीच में जज होते थे और उनकी बात हमने कभी नहीं टाली। रफ़ी साहब को याद करते करते वे इतने भावुक हो गए कि हम बहुत देर तक निस्तब्ध, मौन बैठे एक दूसरे से संवाद करते रहे, ऐसा लगा मानो रफ़ी साहब हमारे आसपास ही कहीं मौन बैठे हैं और हमको भी अब बोलकर उनके मौन को भंग नहीं करना चाहिए।

पर ऐसी कितनी ही बातें उनके चौकीदार शेर सिंह से लेकर बम्बई के टैक्सी वाले करते नही थकते। बिना किसी को बताए, लोगो की मदद करना उनकी आदत में शुमार था। मुझे याद है गुरू नानक पार्क, बान्द्रा के उनके घर में एक सूक्ति लटकी थी जिसपर लिखा था

"जितना झुकेगा जो, उतना उरोज पाएगा
इमाँ है जिस दिल में, वो बुलन्दी पे जाएगा,"

गुरू नानक जैसी संतो सी जीवन शैली को रफ़ी साहब ने जिंदगी में आत्मसात् कर लिया था और कोई अचरज नहीं कि कुछ वर्ष पूर्व एक सिने पत्रिका द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में रफ़ी साहब को फिल्म उद्योग का सबसे प्रिय कलाकार चुना गया था।

रफ़ी साहब की आवाज़ में गायकी ही नहीं बल्कि गज़ब की अभिनय क्षमता भी थी। उनकी आवाज़ में हर रंग, हर अदा, हर भाव छलकता था और इसीलिए किसी भी चरित्र पर उनकी आवाज़ थोपी हुई नहीं लगती थी। रफ़ी साहब से पहले ज्य़ादातर गाने एक सप्तक तक सीमित रहते थे लेकिन रफ़ी साहब की आवाज़ की विविधता, व्यापकता, मिठास और लोच के कारण, उनके लिए संगीतकारों ने दो से तीन सप्तक तक के गीत सृजित किए क्योंकि उनकी आवाज़ संगीत के हर सुर को अपने में समा लेती थी.

मुकेश जहाँ दर्दीले गीतों के गायक थे वहीं तलत महमूद नर्मो नाजुक गजलों के माहिर। मन्ना ड़े जहाँ शास्त्रीय संगीत पर आधारित गीतों से जुड़े रहे तो किशोर कुमार हल्के-फुल्के चंचल गीतों के लिए ही जाने गए। लेकिन इसके विपरीत, रफ़ी साहब ने हर अंदाज़ के गीत गाए और गायकी के बेताज बादशाह कहलाए। हकीकत यह है कि मुकेश, तलत और किशोर ने शायद ही शास्त्रीय संगीत में निबद्ध कोई विशुद्ध भजन, गीत या फिर कोई जोशीली देश प्रेम की रचना गाई हो, ठीक जैसे मन्ना ड़े पाश्चात्य स्वर लहरियों और गज़ल की रूमानियत से कोसों दूर रहे। बहुत कम लोग जानते है कि जब तलत मेहमूद और किशोर कुमार हीरो बने तो उन्हें भी लाला रूख, शरारत, रागिनी आदि फिल्मों के कई गानों में रफ़ी साहब की आवाज़ उधार लेनी पड़ी। खैय्याम, शंकर जयकिशन और ओ पी नैय्यर जैसे गुणीजनों ने तलत और किशोर के पीछे से रफ़ी साहब का इस्तेमाल तब किया जब उनकी रचनाओं के साथ तलत और किशोर काफी रिहर्सलों के बाद भी न्याय ना कर सके। संगीत जगत बेशक रफ़ी साहब के बिना वीरान हो गया है।

गाना रूमानी हो या दर्दीला, मिलन का हो या विछोह का; घुमावदार कठिन तान हो या गज़ल की कोमलता; कव्वाली का जोश या प्रणय का उन्माद; परमेशवर की उपासना हो या देश प्रेम की सुलगती ज्वाला, रफ़ी साहब, शायर-गीतकार के तसव्वुरात को अपने पुरक़शिश अंदाज में रूह बख़्श देते थे। संगीतकार जयदेव ने एक बार बातों ही बातों में हमसे जिक्र किया कि नौशाद, एस. डी. बर्मन, शंकर जयकिशन और ओ पी नैय्यर, रफ़ी साहब को रैंज, सोज़, विविधता और भाव

अभिव्यक्ति के मामले में सभी गायक-गायिकाओं में सर्वोच्च कलाकार मानते थे। पण्डित श्यामदास मिश्र और उस्ताद अमीर खाँ का मानना था कि लोग घंटो की गायकी में जो प्रभाव पैदा नहीं कर सकते थे, वो रफ़ी साहब तीन मिनट में कर दिखाते थे, क्योंकि रफ़ी साहब उच्च कोटि के इन्सान थे और गायकी उनका धर्म, उनका ईमान थी और हर सुर उनके गले से ऐसा बहता था मानो किसी झरने से साफ, निर्मल और मीठा पानी बह निकला हो।

उनके कृतित्व और व्यक्तित्व के बारे में सब कुछ कहना असंभव सा है। सच सिर्फ इतना हैं कि मानव हृदय की गहराईयों को सुरों के द्वारा श्रोताओं के दिलों में तस्वीर की तरह उतार देने की कला सिर्फ रफ़ी साहब ही जानते थे। आज जब कि लोग राजनैतिक गलियारों में राग अलाप कर पद और सम्मान हासिल कर रहे हैं, रफ़ी साहब धर्म, जाति, भाषा से परे, लोगों के दिलों पर राज कर रहे हैं। २७ वर्ष के लंबें अंतराल के बावजूद आज भी रफ़ी साहब की लोकप्रियता बरकरार है और क्यूँ ना हो आखिर उस कलाकार ने अपना सर्वस्व अपनी गायकी को समार्पित कर दिया।


कहते हैं, हर वक्त दुनिया में किसी ना किसी जगह पर रफ़ी साहब का गीत बजता रहता हैं । हमें तो फख़्र है कि ऐसा शख्स भारत भूमि पर पैदा हुआ और इसने हमारे देश का नाम दुनिया भर में रोशन कर दिया। बहुत कम लोग जानते है कि बैजू बावरा के "ओ दुनिया के रखवाले" भजन गाते-गाते, रफ़ी साहब के गले से खून निकल आया था और वो कई दिन तक गा नहीं सके थे। ईश्वर को समर्पित एक सच्चा इंसान ही ऐसी कर्णप्रिय वन्दना गा सकता है।

"गूंजते हैं तेरे नग्मों से अमीरों के महल, झोपड़ो में भी तेरी आवाज़ का जादू है
अपनी मौसिक़ी पे सबको नाज है, मगर मौसिक़ी को खुद तुझ पे नाज है"

कितनी ही बाते हैं, कितने ही गीत, किस किस का जिक्र करें। सच तो यह दोस्तों कि जो मनुष्य खुद में शान्त हैं और आनन्द से तरंगित है, वही प्रकृति से एक हो जाता है। ईश्वर कोई नहीं, बस परम आनन्द की अनुभूति है और हमारा तो ए मानना हे कि रफ़ी साहब की आवाज़ परम आनन्द की अनुभूति है, ईश्वर स्वरूप की अनुभूति है। वो आवाज़ हमेशा अमर रहेगी, अजय रहेगी। शरीर भले ही हम से जुदा हो गया हो पर ए आवाज़ सदियों तक फिज़ाओं में गूंजती रहेगी।

मैं समझता हूँ हम सब, जिन्होंने उनकी आवाज़ सुनी है और वो आने वाली नस्लें जिनके लिए उनकी आवाज़ का जादू रिकार्डो में कैद है, खुशनसीब हैं क्योंकि हम को ऐसी बेहतरीन आवाज़ सुनने को मिली। ईश्वर से यही प्रार्थना हैं कि उनकी पुण्य आत्मा को निर्वाण दे, मोक्ष दे।


2 comments:

Unknown said...

Murthy Bhai..Qasam se yaar Dil khus kar diya...bas bayan nahi kar sakta ..pata nahi kyun koi Rafi sahab ka chahne wala mil jata hai to dil khushi se jhum uthta hai..Waqai sirf Rafi sahab ki wajah kar aap ko jaan pa raha hun ,,,kya chiz the Rafi sahab.

A S MURTY said...

Thanks Gudduji for your wonderful comments. Yeh baat sahi hai ki Rafi Sahab ki hi badolat, hum bhi kuch kar pa rahein hain. Unka naam lekar humne bhi thodi bohat naam kama liya hai. Agar Rafi Sahab nahi hote, to shayad mein bhi un anjaan logon mein se rahta jinki zindagai ke kuch mayine nahi. Jo kushi Rafi Sahab ke taranon se maine paayi hai, mujhe uske badle agar Bhagwan lakhon karodon ki daulat bhi de de to kam hogi. Aapki tippaniyan padh kar bohat hi achha laga, kripaya mujhe email dwara bhi sampark mein rahen :: rafimurty@gmail.com Dhanyavaad.