Tuesday, December 11, 2007

SHAYARI RAAS AA GAYI




(१) तेरे नग्मों से महज़, मिल जाता है जन्नत-ए-सुकून,
अब ज़िंदगी भर की खुशियाँ लेकर, रफिमुर्ति, क्या कीजियेगा

(२) मुमकिन है मेरे बाद भी आएंगे कई दीवाने,
मलाल इस बात का है, रफिमुर्ति बेखबर होगा

(३) वैसे तो ज़माने में लाखों है रफी के शागिर्द,
एक तू, रफिमुर्ति, बस दीवानों का शहजादा है

(४) बोहुत समझाया दिल-ए-नादान को कुछ और भी है ज़िंदगी में ,
कम्बखत को रफी के तरानों  से  फुरसत ही नही मिलती

(५) मेरे दिल की गहराइयों
में झांक कर देख मेरे दोस्त,
कहीं यह वोह सुरूर टोह नही
मोहम्मद रफी कहें जिसे

(६) ज़िंदगी में यौन भी भटकता रहा था रफिमुर्ति,
चंद परिंदों की खातिर शायरी रास आ गयी


(७) ज़माने आये ज़माने चले गए,
तेरे नग्मों के सुबह की शाम न आई

(८) ज़िंदगी बार बार नही आती रफिमुर्ति,
गर कुछ कहना है
तो वक्त जाया नही करते

(९) फरिश्तों की महफिल में हो रही
थी बात

यह रफी साहब इंसानियत पर जोर क्यों दे रहें हैं


(१०) तेरे जिस्म में जो खून था रफी साहब, वोह लाल नही,
हर इक कतरे से मौसुकी की महक, शरबत-ए-सतरंगी का जाम था


(११) झूमकर खुशी से जब लौटकर आ राहे थे हम,
लोगों ने कहा ज़रूर बज्म-ए-रफी से होकर आया होगा


(१२) नगमा वाही है नगमा के जिसे,
रूह सुने और रफी साहब सुनाएँ

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